"प्रगतिवादी साहित्यक यात्रामे एकटा नवका इतिहास : “मिथिला मुक्तिके संनेश”" :: majheri.com
प्रगतिवादी कला, संस्कार, सस्कृति आओर जनसाहित्य समाज रुपान्तरके एकटा बहुत भारी नमहर बैचारिक हतियार अइछ । प्रगतिशिल समाजिक जीवन निर्माणमे प्रगतिवादी कला साहित्यके बहुत नमहर भुमकिा रहैत अइछ । गलत संस्कार, संस्कृति आओर बुर्जुवा कला साहित्यके भण्डाफोर करैत जखन नयाँ ढंगके प्रगतिवादी यर्थाथवादी कला, साहित्यमे नवका इतिहास थपैत अइछ तखन हमर मन खुशीसे गदगद होइत अइछ । सामाजवादी यर्थाथवादी कला आ जनसाहित्यक सुन्दरता उपर अहेन निमन निखारल कलमक प्रस्तुतिसे जनसाहित्य दुनियाँमे थप उत्साह और मनोबल पैदा केने अइछ । नेपाली सामाजमे अहेन निमन निखारल कलम अधिकारमे पछाडि परल मधेशके जन्मभुमीसे निकलैत रहत त निश्चित रुपमे नेपाली और मधेशी जनता सबके मुहार फेर सकैत अइछ । भौतिकवादी आओर द्धन्दवादी दृष्टिकोणसे भरल आमुल परिवर्तन लछित अहेन वर्गचेत, वर्गप्रेम जनसाहित्यसे राष्ट्रा आ जनताके दुःख, पिडा, लक्ष्य, उदेश्य, ईच्छा, आकांक्षा, लगयतक सारा चिजके रक्षा करैत अइछ ।
जखन नेपाली जनताके हरेक क्षेत्र उपर सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनितिक आओर कानुनी रुपमे सेहो एकलौटी सासन चलाबै खातिर राज्यपक्षसे दलबलके प्रयोग कैरके कठिनसेकठिन दमन, शोषण, उत्पीडन, अन्याय, अत्यचार, लुटआतंक, हत्या हिसां चलावलागल तखन नेपाली जनता आन्तरीक आओर बाहिरी रुपमे अंगभंग होबलागल आओर नेपाली जनताके बरदाससे फाल्तु भगेल तकर विरुद्ध जनयुद्ध केलक जकर परिनाम आइ नेपालमे गणतन्त्रके उदय भेल अइछ । “जत दमन होइत अइछ ओत बिद्रोह होइत अइछ”। ओही कहाबट संगसँगे सम्भावना और चुनौतिके बीचसे आई नेपाली जनता यत तक आइबगेल अइछ, लेकिन तैयोधैर कैयन हार जितके लराई रहबेकरल अइछ । अखनोतक शहिदसबहक सपना आओर नेपाली जनताके इच्छा आकाक्षा पुरा करैकेलेल बहुत कठिन अइछ । नेपालीजनताके राष्ट्रघाती, जनबिरोधि, कायरलाछि, दलाल, फटहा, नोकारशाहसब मिलके ठकैत आएल अइछ आओर अखनो २१ औँ सताब्दीमे आइबके ठकैलेल हरेक कसरत करहल अइछ । जवतक नेपाली जनता अन्याय उपर न्याय, असामान्ता उपर सामान्ता, असभ्यता उपर सभ्यता अर्थात उन्मुक्ति आओर स्वतन्त्रताके साँस नै लसकैत अइछ आओर बिस्तारवादी आ साम्राज्यवादी देशीबिदेशी शक्ति सवके गुलामसे जवतक राष्ट्र आ नेपाली जनता मुक्त नै भसकैत अइछ तवतक नेपाल आओर नेपाली जनता स्वतन्त्रताके अनुभव नै कसकैत अछि ।
जर्मनके क्रान्तिसे जन्मल माक्र्सवाद, रुसके जनविद्रहसे जन्मल लेलिनवाद, चिनके दिर्घकालीन जनयुद्धसे जन्मल माओवाद आओर मालेमावादी विचारधारासे जन्मल २१औं शताव्दीमे नेपाली क्रान्ति अर्थत माओवादी(प्रचण्डपथ)से अखनतक यी प्रमाणीत कदेने अइछ कि कला आ साहित्य जनतासवके एकजुट रखैवाला एकटा बहुतभारी तागत अइछ । अखन नेपाली इतिहासमे क्रान्तिकारी कला, साहित्य आओर संस्कृतिके जगहमे विभिन्न भाषा–भाषीके तरफसे कलम चलाबैबाला वर्गसवहक विकास बहुत भरहल अइछ । नेपाली आओर मधेसी जनतासबके आमुल परिवर्तनके खातिर भेल महान जनयुद्ध आ जनआन्दोलनसे जन्मल सुन्दर बैचारिक बिचार आओर भावनासे त झन थप बिकास भेलवात अहेन खालके सृजनात्मक कला, प्रतिभासबसे, प्रमाणित भगेल अइछ । आइ ओकरे प्रभाव अइछ कवि जीवछ उदासीजीके कविता कृति“मिथिला मुक्तिके संनेश” । नेपाल आओर मधेसमे भेल आओर भरहल सत्य असत्य दोनोके इतिहासउपर यर्थाथवादी आओर द्धन्दवादी रुपसे जहिनाके तहिना अपन बातचित रखने अइछ आ समाजवादी यर्थाथवादी धरातलमेसेहो रहिके अपन प्रगतिशिल प्रतिभाशाली प्रतिभा प्रस्तुतिके जमघट केने अइछ उदासीजी । मैथलीमे अहेन प्रतिभाशाली कलम मधेस भितर रहलास थप उर्जाके श्रोत भण्डारण भेलके सुगन्ध सेहो छिटदेने अइछ । चाहे कोनो भाषा भाषीके तरफसे कलम चललासे यदि राष्ट्र आओर जनताके सेवा समर्पण उपर लछित अइछ त कोइ ओकर जुगजुगतक बराई कसकैत अइछ । अहिना खालके प्रगतिवादी क्रान्तिकारी राष्ट्र आओर सर्वहारा जनताके मुक्ति आओर स्वतन्त्रताके पक्षमे यर्थाथ धरातलमे रहिके मैथली साहित्यमे कलम चलेने आओर चलाबैबाला मधेसी कवि कवियात्री आओर साहित्य प्रेमीसब स्व. रामवृक्ष यदाव, रोशन जनकपुरी, राजेश विद्रोही, धमेन्द्र प्रेमर्षी, राजेन्द्र विमल, धमेन्द्र कर्ण, जितेन्द्र जित, रमेश रन्जन, शितल कर्ण, रामविकेस, सुरेन्द्र जयसवाल आदि साहित्य जनयोद्धासबके साहित्य यात्रामे थप मजगुत स्थान हासिल करैलेल सफल भेल अइछ आई उदयमान प्रगतिवादी युवा कवि जिवछ उदासी ।
उदासीजीके कविता कृतिमे शब्द आ अर्थसब दोहरिआलोपर सामुहिक वर्गचेत भावना आओर सम्वेदनाके हिसाबके दुरगामी महत्व बोकने अइछ । खुलम–खुला रुपमे निर्धक भके अहेन निखारल मैथली भाषामे कलम चलेनाई कोनो चानचुने काम नै अइछ । कवि उदासीजी मैथली बासी भके मैथलीमे आओर मैथली भाषा भाषी सबमे बहुत गुण लगेने अइछ । मधेसी समुदायके भाषा आ संस्कार संस्कृतिकेलेल भाषीक क्षेत्रमे परिवर्तनके लेल अहेन कष्ट उठेनाई कवि उपर लाखौँ लाख धन्यावाद आओर अभिवादन अइछ । कथिले कि मैथली भाषा बोलैलेल जहेन निमन हलका लगतै अइछ तैहीना ओकरा कलम आओर ब्यवहारमे देखेननाई बहुत कठिन अइछ । से कठिनाईके आई जिवछ उदसीजी बहुत दुर कदेने अइछ । सेहो हुनकर कविता कृतिभितर दलित, महिला, शहिद, घाईते, बन्दी, बेपता, अपाङ्ग, मधेस, पहाड, हिमाल, तराई, कोइ नै अइछ पराई भन्ने मिलानके सुगन्धसे भैर देनै अइछ । कवि उदासीजीके अहेन निमन लेखन शैलीसे साँचेके कवि कहैलेल मन पराएल । मधेशी युवा कवि जीवछ उदासीके साहित्य यात्रामे जब हम पहुँचलु त हुनकर कविता कृति भितर समालोचन करैलेल बहुत जगह भेटल । पढलासे बीच बीचमे बहुत रसगर, बहुत चहटगर लगलासे कखनो हमरा शहिद, बन्दी, गरीब, दलित, महिला आओर राष्ट्रके उपर लिखल शब्द शैलीसे हम कखनो भाबुक त कखनो क्रोधित सेहो भगेलौं ।
कवि जिवछ उदासीजी अखैनका दुनियाँ ढौवा आ बलके भरमे टिकरहल बातचीत कहने अइछ । (pb^2= Money attacks power and power attacks money) कैलाका जमानामे पैसा आ शक्तिके ओतेक मतलब नै छेल लेकिन अखैनका जमानामे आइबके ढौवा आ बलके अतेक मान्यता भगेल अइछ की संसारके हरेक चीज लुइट सकएत अइछ । तै उपर कवि उदासी उदासीन भके अपन चिन्त ब्यक्त केने अइछ । (Money is nothing or money is everything) पैसा आओर शक्तिके भरमे टिकल यी संसारसे उन्मुक्ति हैकेलेल कवि सैबमे आहवान केने अइछ । ढौवा आ बलके भरमे आदमीसब अपन इज्जत प्रतिष्ठा, संस्कार संस्कृति आओर अपन देशके स्वाभिमान सेहो गुमाबैकेलेल पछारी नैपरल अइछ ।
अखैनका जुग अहेन अछि की ढौवाके भरमे संसारे किन्न सकैंत अइछ आओर बलके भरमे सैव संसारे हरैफ सकैत अइछ । पैसा आ शक्ति नै भेलसंगे अपन कहल चिज कुछ नै अइछ आओर कहलो चिज गमा सकैत अइछ । सत्ता नै अइछ सत्ता प्राप्ती कसकैत अइछ, आदमी नै अइछ आदमी खरिद बिक्री कसकैत अइछ, आर्थात पुलिस प्रसासन अरअदालत कि कि नै अइछ सैब कुच्छ प्राप्ती कसकैत अइछ ।–“सेना नै रहल जनतासँगे अपन कहल चिज कुछ नै होइत अइछ”। “–यी माओके भनाइके अर्थमे ब्याँग्यात्मक दोसर शब्द शैलीके अर्थमे अखैनका जुग अनुसार कवि उदासी उल्था केने अइछ । तै हेतु अंई चिजसबके भ्रममे परल आदमीसबके चिरफर करैकेलेल आओर ओइ चिजसबसे संकुचन आ उपेक्षित वर्गसबके मनोवल बैचारीक ढंगसे उठाबैकेलेल देखियौ कवि जीवछ उदासी अपन कवितांशमे की कैहरहल अइछ –
जकरा नहि अछि ढौवाकौरी आओर रुपैयाँ
ओकरासवके के पुछतै अहि युगमे हो भैया
ढौवेपर चलिरहल अछि दुनियाँ
ढौवेखातिर लोक वनल जाइए खुनियाँ ...
ढौवे दइत अछि सुख
ढौवे दइत अछि दुःख
बिन ढौवाके नहि मिटत भूख ...
ओकरासवके के पुछतै अहि युगमे हो भैया
ढौवेपर चलिरहल अछि दुनियाँ
ढौवेखातिर लोक वनल जाइए खुनियाँ ...
ढौवे दइत अछि सुख
ढौवे दइत अछि दुःख
बिन ढौवाके नहि मिटत भूख ...
पहिलका आओर अखैनका जुगमे घटल आओर घैटरहल शासनके समझाना करवैत कोन युग ककर भरमे टिकके आएल आ अखैनका कहल २१ औँ शताब्दीके जुग कोन चिजके भरमे टिक रहल अछि ओइ चिजसबके युबोध करबैत फेरोसे कैहए कवि उदासी सुनु –
सत्ययुगमे दुनियाँ चललै सत्यपर
त्रेतामे रामचन्द्रजीके आदर्शपर
द्वापरमे कृष्णके छलकपटपर
कलयुग टिकरहल अछि ढौवापर ।–(ढौवा चालिसा)
त्रेतामे रामचन्द्रजीके आदर्शपर
द्वापरमे कृष्णके छलकपटपर
कलयुग टिकरहल अछि ढौवापर ।–(ढौवा चालिसा)
पुस्तौसे मधेशी जनता, सास्कृतिक, आर्थिक, राजनितिक आकानुनी रुपमे शोषण उत्पीडन, अन्याय, अत्याचारके शिकार होएत आएल अइछ । सत्ता आओर शक्तिके खेलबारमे वर्षौसे मधेशी जनतासब ठकाएत आएल अइछ, आओर अखनोतक सत्ताधारी शक्तिसब मिलके ठकैलेल हरेक कसरत करहल अइछ । देशमे भेल अखनतकके हक अधिकारके लडाईमे मधेसीयो जनतासब अपन खुन पसिना सामुहिक रुपमे बहेने अइछ आओर बहाइत अबैत अइछ, मुदा तैयोधैर आएल परिवर्तन आ उपलब्धीमे मधेशीसबके मर्म आ भावना कोइनै बुझलक नैकी कोनो किसिमके हक अधिकारमे ग्यारेन्टी केलक बात कारुणीक स्वरमे कवि उदासी भावुक होएत कहैए –
कियो नहि बुझलक मधेशीक दुःख
कियो नहि मिटलक मधेशीयाके भुख ।–(मधेशक पुकार)
कियो नहि मिटलक मधेशीयाके भुख ।–(मधेशक पुकार)
राणाकालसे लके पंचाईती व्यवस्थातक, पंचताइती व्यवस्थासे लके २०४६ सालके जनआन्दोलन तक आओर शाही शासनके बिरुद्धमे भेल नेपाली क्रान्ति आ जनआन्दोलनसे लके गणतन्त्र प्राप्ती तकके विभिन्न हक अधिकारके आन्दोन, क्रान्ति आ जनविद्रोहमे मधेशीयो जनतासब अपन खुन पसिना बहेने अइछ लेकिन जखन हक अधिकार बनाबैके समय आबैत अइछ तखन मधेशी जनता उपर धोखा हैत आबैत अइछ । अखनोतक नेपाली जनताके हक अधिकार जनताके हितमे बनबैलेल बहुत कठिन अइछ । धोखे धोखासे मधेशी जनता बहुत पाठ सिखलेने अइछ । तै हेतु आब मधेशी जनता आमुल परिवर्तनमे अपन हक अधिकार आ संस्कार संस्कृतिके रक्षाकेलेल नै छोरत, तकर खातिर सैब नेपाली वर्ग जाइतसब मिलके उठपरत, “अधिकार मागलासँ नै मिलैत अइछ, अधिकार छिनलासे मात्रे मिलैत अइछ” । तै हेतु अपन संस्कार संस्कृति आ हक अधिकारकेलेल मधेशी जनता फेरोसँ उठपरत, अधिकारमे पछारी परल आओर सुतल मधेशी जनतासबके जोस जागार शब्दसबसे भरल मिठगर कविताके शैलीमे कखनो गाउँसे कखनो शहरसे त कखनो पूर्वसे त कखनो पश्चिमसे देखु कोनाके उठबैत अइछ कवि –
जागु ! जागु ! मधेशी बिहान भगेलै
मधेशीके लहर तुफान भगेलै ।
गाउँसँ उठु, शहरसँ उठु
पूर्वसँ उठु, पश्चिमसे उठु ।–(जागु ! जागु ! मधेशी...)
मधेशीके लहर तुफान भगेलै ।
गाउँसँ उठु, शहरसँ उठु
पूर्वसँ उठु, पश्चिमसे उठु ।–(जागु ! जागु ! मधेशी...)
अखनोतक मधेशी जनतासबके हेफ रहल अइछ । तै हेतु कवि कहैए गर्वसे कहु हम मधेशी छी, मधेशीके तन मधेशी मन मधेशी भाषा सेहो मैथिली यौ, यदि कोइ बिदेशीके आरोप लगेबै त मधेशी जनता आब नै सैह सकैत अइछ बल्की तकर बिरुद्ध लडत तकर विरुद्ध मरत आक्रोशीत हैत फेरोसँ कहैए–
तन मधेशी मन मधेशी
भाषा हमर मैथिली यौ
विदेशी कहिकऽजौं आरोप लगबै
मन होइए जीव पकैरकऽ खिचली यौ ।–(तन मधेशी मन मधेशी)
भाषा हमर मैथिली यौ
विदेशी कहिकऽजौं आरोप लगबै
मन होइए जीव पकैरकऽ खिचली यौ ।–(तन मधेशी मन मधेशी)
नेपालमे एकटा बहुतभारी इतिहास अइछ की नेपाली जनता अपन देश आ हक अधिकार, संस्कार संस्कृतिकेलेल अपन खुन हाइस–हाइसके बहादैत अइछ । चाहे अंग्रेज विरुद्धसे लके, राणा सासनके बिरुद्धमे होई चाहे पंचाइती ब्यवस्थासे लके छयालीस सालके जन–आन्दोलनमे होइ आओर अखैनका तानाशाही राज्य ब्यवस्थासे लके गणतन्त्र प्राप्तीके क्रान्ति आ आन्दोनमे होइ यी एकटा बहुतभारी प्रमाण अइछ कि यी लराईसबमे मधेशीयो जनतासब सामुहिक वर्गस्वर्थकेलेल अपन त्याग तपस्या आ बलिदान केने अइछ तकर इतिहास गवाह अइछ ।
महान नेपाली जनयुद्ध आ जनआन्दोलनके क्रममे देशी बिदेशी शाोषक सामन्तसब आओर पुलिस प्रसासनसब मिलके कोनाके नेपाली जनता उपर अन्याय अत्याचार केलक गणतन्त्र देशमे कोनाके आएल शहिदसब कोनाके शहिद भेल, मधेशीयोसब बहुत खुन बहेलक त्याग तपस्याकेलक लेकिन आई शहिदसबके बराबर सामान नै कैरके अपमान कैने अइछ । कथीलेकी शहिदसबमे अखन वर्ग छुटल अइछ । जकर बात ब्यवहारसे पुष्टि भगेल अइछ । तै दुआरे कहैए कवि सुनु–
शहिद सबहक बहलै खुन
गावै लोकसब लोकतन्त्रके धुन
शाही मतियार सबके लगवै परत कारीक चुन ।
दमन केलक, शोषण केलक
सडकपर आएल जनता उपर ठोकलक गोली
कत्तेक आन्दोलनकारी सबहक पैइर टुटल
कत्तेके फुटल आँइख ।–(शहिद सबहक बहलै खुन)
गावै लोकसब लोकतन्त्रके धुन
शाही मतियार सबके लगवै परत कारीक चुन ।
दमन केलक, शोषण केलक
सडकपर आएल जनता उपर ठोकलक गोली
कत्तेक आन्दोलनकारी सबहक पैइर टुटल
कत्तेके फुटल आँइख ।–(शहिद सबहक बहलै खुन)
देशमे नयाँ संविधान, नयाँ कानुन आ नयाँ नेपाल बनाबैकेलेल सबसे पहिने राजनितिक पार्टीसब पार्टीवादी चिन्तन आ प्रवृतिसे उपर नै उठत, जवतक पुरनका बातसब नै भुइलके पुरनका दुश्मनिके भावना मनसे नै हटेत, आ जनता आओर देशके देल बचन पुरा नै करत तबतब देश नयाँ देश, नयाँ संविधान आ जनताके देल बचन पुरा नै भसकैत अइछ । आइकाइल कहैत संविधान बनावैले देर भरहल अइछ, देरमे अन्धेर भरहल अइछ । राजनितिक पार्टीसबहक नेतासबके संम्झाइत देखियौ सान्ति संविधान के लेल कि कहैत अइछ कवि –
गाडल मुर्दा नहि उखारु
भेल काज नहि विगारु
विवाह श्राद्ध नहि करु एके बेर
संविधान सभामे भजाएत देर ।–(गाडल मुर्दा नहि उखारु)
भेल काज नहि विगारु
विवाह श्राद्ध नहि करु एके बेर
संविधान सभामे भजाएत देर ।–(गाडल मुर्दा नहि उखारु)
देश आइ बहुतभारी संकटसे गुजैर रहल अइछ । सबकोइ देशमे शान्ति संविधान बनावैपरत कहैत अइछ । लेकिन व्यवहारमे देखु त सब राजनितिक पार्टीसब अपन–अपन वर्गीय स्वार्थमे डुबल अइछ, तै हेतु देशमे नयाँ सविधान नै बैनरहल अइछ । जतेक शान्तिके नाम जपैत अइछ ओतेक अशान्ति भरहल बात कवि कहै अइछ –
शान्ति शान्ति सब कहैइए
मुदा शान्तिके सपना नहि भेल पुरा
नहि विश्वास होइए त जाके देखु
कपिलवस्तु नहि अछि बहुत दुर ।–(हटाउ वैरभाव...)
मुदा शान्तिके सपना नहि भेल पुरा
नहि विश्वास होइए त जाके देखु
कपिलवस्तु नहि अछि बहुत दुर ।–(हटाउ वैरभाव...)
आइ देशके मधेसमे दहेज प्रथाके महामारी चैलरहल अइछ । जकर कारण मधेशमे हत्य, हिंसा, चोरी, सिकारी, बलातकारी आ वहुविवाहके शिकार महिलासब भरहल अइछ । पृत्री सत्तात्मक समाजमे महिला पुरष बिच अतेक भेदभाव भगेल अइछ की आदमीसब अपन बुद्धिके भरमे नै चैलरहल अइछ, गाईमाल जका आदमीसब बिकरहल अइछ, काटमार भरहल अइछ । कवि उदासी दहेज प्रर्थाके विरोध करैत महिला हकअधिकारके हन्नके वात समाजमे कोना भरहल अइछ । देखु कविके शब्दमे –
पढहल लिखल लोकके बात
दहेज मागै लाखक लाख
शुद्धि बुद्धि सब भुलिगेल
नगदी मागैमे सब डुबिगेल ।–(दहेज मागे लाखक लाख)
दहेज मागै लाखक लाख
शुद्धि बुद्धि सब भुलिगेल
नगदी मागैमे सब डुबिगेल ।–(दहेज मागे लाखक लाख)
नेपालमे मात्रे नै हमर अहाँके समाजमे पछासे टाङ्ग खिचैबाल प्रवृतिके बिकास आइसे नै पहिलेसँ अइछ । साम्राज्यवादी आ विस्तारवादी सबहक इसारामे चलैबाला नेतासबमीलके अपन देशमे आइ ऋणे ऋृणके संत्रासमे डुवा देने अइछ । देशमे बहुत सम्पति अइछ, अतेक अइछ की आइ जतेक देशमे भ्रष्टाचारी सबभेल अइछ, जतेक खर्चभेल अइछ, उ सैब जोरु त हरेक जनताके घरघरमे सुख आ खुशीके राहतसे भरल रहतीयै । देशमे रहल एक दोसरके टाङ्ग खिचैबाल प्रवृतिके कारण आ देशी विदेशी शोषक सामन्त सबके कारण कोनाके नेपालमे नेपाली नेता सब कखनो बाघ कखनो बकरी कखनो धान कखनो खकरी बनैत अइछ कविके ब्यांँग्यात्मक प्रस्तुति –
घडी बाघ घडी बकरी
कखनो धान कखनो खकरी
कहियो खोजत इमान्दारीके रोटी
कहियो बनत विदेशी गोटी
उल्टे उल्टे करत बात
आगु बडनियारके खिच्चत पच्छासँ लात ।–(अहाके बखत आविगेल अरामके)
कखनो धान कखनो खकरी
कहियो खोजत इमान्दारीके रोटी
कहियो बनत विदेशी गोटी
उल्टे उल्टे करत बात
आगु बडनियारके खिच्चत पच्छासँ लात ।–(अहाके बखत आविगेल अरामके)
कवि उदासी सपथक भाषामे कहैए–हमसैब नेपालीछी तकर वादे और कोइ जाइतभाइत क्षेत्र लिङ्ग छी । तै दुआरे नेपालीके मन नेपाली तन नेपाली तकर बादे अरु किछ अइछ । देशी बिदेशी साम्राज्यवादी आ विस्तारवादी सबके हर्कत अहिना नेपालमे अगाडि बढैत रहत त नेपाली जनताके एकमुठी साँस आ एकमुठी खुन रहलतक अपन देश आ हक अधिकारकेलेल लडैत रहत मरैत रहत । जहीना हक अधिकार आ एकताके नाममे सैब नेपाली जनता एके रहैत अइछ, तैहिना एके रहब ओइमे कोइ मधेशी कोइ पहाडीके भेदभाव नै रहत बलकी मधेशी जनतासब अपन देशके रक्षा करै बखत समय आएत तखन कमाण्डर आ नेता भके नै आवश्यक परैत त पुलिस आ सदस्य भके लडैलेल तयार रहत । देशीबिदेशी, साम्राज्यवादी आ विस्तारवादीसबके खरदारी करैत कवि कहैए –
चाँद सुरुज उपर गवाही
हमछी देशक एक सिपाही
बन्दुक लेने हम छि खडा
राष्ट्रिष्यताके लगवै छि नारा ।–(हम छि देशक एक सिपाही)
हमछी देशक एक सिपाही
बन्दुक लेने हम छि खडा
राष्ट्रिष्यताके लगवै छि नारा ।–(हम छि देशक एक सिपाही)
पहाड मधेश हिमाल तराई कोइ नै अइछ पराईके भावनामे रहिके कवि मानव समाजके उत्पती बिकाससे लके अखनतकके बात सम्झाइत कहैए कवि–हमसब एके माइके सन्तानछी, एके जाइत आ बंश/गोत्रके लार्भाछी आइ जे जाइतपाईत, छुतअछुत, वर्ग, क्षेत्र, लिङ्ग, भेदभावसे समाज कुत्ताके नँगरी भगेल अइछ । यी सैव कारण मानव जातीके उत्पति बिकास आ चेतनाके विकाससँगसगै जन्मल सत्ता स्वार्थ आ अपन शासनकेलेल बनल भेदभाव छुवाछुत अइछ । तकर शिकारके कारण मानव समाज आइ जाइतभाइतमे फुइटके विभक्त भगेल अइछ । जखन मानव जाइतके उत्पति भेल तखन चेतनाके बिकास सँगसँगे बसाईसराई आ बातावरणके कारण कोइ गोर कोइ कारी, कोइ छोट कोइ नमहर भेलबात कवि स्मरण करेने अइछ । तै दुआरे हम सैब मानव जाइत एके माइके सन्तान छि कहैत कवि उदासी ।–
एके माइके सब सन्तान
कियो भेल गोर, कियो भेल कारी
कियो भेल मधेशी, कियो भेल पहाडी
रङ्ग भेद, जाती विभेद
सबछि भाइ भाइके फुटवैवाल नखरा
राष्ट्रियता नहि टिकत जखन भजाएव
अपना अपनामे भिन्न बखरा ।–(एके माइके सब सन्तान)
कियो भेल गोर, कियो भेल कारी
कियो भेल मधेशी, कियो भेल पहाडी
रङ्ग भेद, जाती विभेद
सबछि भाइ भाइके फुटवैवाल नखरा
राष्ट्रियता नहि टिकत जखन भजाएव
अपना अपनामे भिन्न बखरा ।–(एके माइके सब सन्तान)
आई देशमे विदेशी हस्ताक्षेप के कारण विदेशक ओर जारहल अइछ । यदी आवोतक देशभक्ति परिवर्तकारी शक्तिसब नै मिलके देश जोगेतै त नेपाल नेपाल नै विदेश भजाएत । देशमे ऋणे ऋणसे नागरीक विहाल भगेल अइछ, आओर कोइ खाइत खाइत मरैए, कोइ भुखे मरैए, कतौ भ्रष्टचारीके खेती उब्जैए कहैत कवि –
इमान्दार सुखाके भेल लचार
भ्रष्टसबके हर जगह जयजयकार
इन्सानके रौदी परलै जग हाहाकार
जमरे ताकव ओमरे देखव डेग डेगमे भ्रष्टाचार ।–(डेग डेगमे देखु भ्रष्टाचार)
भ्रष्टसबके हर जगह जयजयकार
इन्सानके रौदी परलै जग हाहाकार
जमरे ताकव ओमरे देखव डेग डेगमे भ्रष्टाचार ।–(डेग डेगमे देखु भ्रष्टाचार)
फोरोसे कहैए कवि यदि आवोतक नेपाली जनता आत्म निर्भर नै हेत, विदेशीएके मुह ताकैत रहत त एक सत्ताब्दी फेरोसँ पछाडी भजेत नेपाली जनता । तै हेतु आब बिदेशीके मुह ताइकके नै बलकी अपने पैरमे खडाहोइकेलेल सैब नेपाली जनताके आहवान केने अइछ कवि कि यी कामकाज केलासे कोइ नीच कोइ उच्च नै भसकैत अइछ ।–
विदेशीके मुह ताकव कतेक दिन
दक्षिण भारत उत्तर चिन ।
अपने केलासँ होएत किछ
कियो नहि उपर कियो नहि निच ।–(विदेशी मुह ताकव कतेक दिन)
दक्षिण भारत उत्तर चिन ।
अपने केलासँ होएत किछ
कियो नहि उपर कियो नहि निच ।–(विदेशी मुह ताकव कतेक दिन)
सामान्य आ सरल भाषा शैलिमे कवि जीवछ उदासी अपन कविता अपन भाषामे गद्य, पद्य , गजल आ गितिशैलीमे लिखने अइछ, लेकीन छन्द, लय आ भाषा शैलीके प्रस्तुतिमे टुटफुट अइछ । एकेटा शब्द आ अर्थ कविता शिर्षकसबमे दोहारिएलासँ कविता पढलापर बिच बिचमे उराँठ आओर दीकदारी महसुश होएत अइछ । तै हेतु आवके दिनमे छोटगर मिठगर शिर्षक आ शब्द शैलीमे कविता लिखैकेलेल सल्लाह सुझाव अइछ आओर पुरनका आ नवका वातचितसबके प्रस्तुतिमे साहित्य शब्द शैलीके नजर आ फ्युजनमे सेहो मध्य नजर दैकेलेल आग्रह अइछ । भावी दिनमे एहोसे निखारल आ परिस्कृत भावना, विचार आ शब्दशैली आओर सन्देशमुलक साहित्य सृजनामे सुधारके आशा अपेक्षा सहित अतबोको केने उपर कवि जीवछ उदासीके मुरीमुरी धन्यवाद अइछ ।
सिरहा जिल्ला गा.वि.स. महदेवा पोर्ताहाा वाड नं. ३ हाल लहान न.पा.२ मे बसोबास करैत आएल स्व. बाबु शोभितलाल यादव आ मैयाँ गुजुरवति यादवके कोखसे मध्यम वर्गिय किसान परिवारमे जन्मल कवि जीवछ उदासी अंग्रेजी विषयमे बि.एड. स्नातक पास केने अइछ । अखन नि.मा.वि.पोर्ताहा स्कूललके सरकारी जागिरमे शिक्षकके रुपमे काम करहल अइछ आ बहुत संधसंस्था संगठन आ पत्रकारीतामे सेहो जोरल रहलोपर अतेक काममे बाबजुधो समय निकाइलके अपन कला प्रतिभाके जुझारु रुपमे अपन कलम मुक्ति आ स्वतान्त्रके पक्षमे आ जनताके हितमे प्रगतिवादी साहित्यमे कलम चलेनाइसे उदासीके यी दोसर सफलताके काम अइछ । १२० पेजमे ८९ वटा कवितासब लिखल कविता संग्रहमे कभरके उपर सजावटमे मिथिला बासीसबके धार्मिक पहिचान सहित शिक्षा स्वास्थ्था रोजगारी, सुरक्षा, बिकस, न्याय, सामानता, संधियता, मानवअधिकार, भूमि अधिकार, राष्ट्रियता आ गणतन्त्रके अलौकिक शब्द आ अर्थ सबसे भरल अनेकाअर्थ बोकने अइछ । चित्रमे अपन मधेशके धार्मिक पहिचान आ सभ्यताके पहिचानसे भरल अइछ ।
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